Wednesday, June 9, 2010

आवेदन --अनाथालय के एक बच्चे की अंतर्वेदना

 थोड़ी ममता , थोडा  स्नेह
क्या थोडा मोह उधार मिलेगा 
हम सबके नफ़रत सह लेंगे
गर तुमसे थोडा प्यार मिलेगा

सब आते हैं,फिर चले जाते हैं
शायद खुद को बहलाने आते हैं
मेरी उम्र नहीं की समझ सकूँ
इतने लोग यहाँ पे क्यों आते हैं
जान भी लूँ,पहचानूँ दुनिया गर
तुझमे अपनों सा अधिकार मिलेगा .

मेरे खून के रिश्ते कहाँ गए सब
इस भीड़ में क्या कोई मेरा होगा
या बस खिलौने टॉफी बाँटने के बाद
फिर वही तनहा दिन मेरा होगा

रिश्ते नातों की छोडो पेचीदे ये
मेरे दिन तो बस सीधे सीधे से
जिससे झगडू , जिसपे रोऊँ भी
क्या खेलने को कोई यार मिलेगा .

दुनिया में हम तो नहीं अनोखे
दया की भीख  के हम न भूखे
मेरी दुखती रग पर हाँथ न रखना
कुछ देना है तो बस ये दे देना
जिसके लिए कुछ करना चहुँ
क्या एक रिश्तीं का संसार मिलेगा. 

1 comment:

Aakanksha Mishra said...

हृदयस्पर्शी।