Tuesday, October 29, 2013

बेचने वाले बड़े अजीब होते हैं.

this is called perfect business
बेचने वाले बड़े अजीब होते हैं.
अपने गम को तो बक्शा नहीं .
कभी किसी भूखे बच्चे की तस्वीर बेच दी,
कभी किसी अपाहिज की तकदीर बेच दी.
मांगा जब हिसाब उससे
तो इंसानियत की जंजीर भेज दी.
कभी भूकंप की तबाही को बेचा ,
तो कभी सहादत की स्याही की बेचा 
कभी बाढ़ का खौफ, फांसी का उत्सव बेचा
और कभी अकाल का भूख और गिद्धों के करलव को बेचा
कभी युद्ध की दीवाली तो कभी बलात्कार का सच बिक गया
तो कभी अराजकता  और कभी अपनी ही हाहाकार को बेचा
सच में....सचमुच...बेचने वाले ने खूब फायदा-नफा कमाया है. आज दावत है.
#indianmedia
#pseudohumanright
#artofphotography

once again to tease u on this eve..

once again to tease u on this eve..

हिंद देश के निवासी सभी जन एक हैं.
facebook के आधे से भी ज्यादा id fake हैं...

जन गन मंगल दायक भारत भाग्य विधाता है.
उमर कसाब लादेन सब का RBI में खाता है....

देने वाले जब भी देते, देते छप्पर फाड के.
भले इंडिया गेट को भी लश्कर ले जाए उखाड के....

जहाँ डाल डाल पे सोने की चिड़िया लटकती है.
उस जंगल में नक्सल के डर से तितली भी नहीं भटकती है....

हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा सडती है.
गैया बकरी कटती है, मुनिया बेटी पढ़ती है.....

अन्ना तुम्हारे अन-शन पे response हमारा late है.
क्योकि आधा इंडिया हर रात को सोता खली पेट है.
IPL TICKET का फिर भी बढ़ता जाता रेट है.....

देख तेरे इंसान की हालत क्या हो गयी भगवान.
मिडिया झूठी,नेता अनपढ़ जज हुए बेईमान......

आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ मिटटी हिन्दुस्तान की.
खून खराबा दंगा कर, है कसम खुदा और राम की.....

राजनीती को गन्दी कह कर देशी दारू चखना है.
दम मारो दम, अपने मन तो बस लन्दन का सपना है.....

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा है.
आज का graduate ये न जाने गाँधी को किसने मारा है .....

मेरे देश की धरती कोयला उगले उगले हैजा टीबी
हर जवान के एक ही सपना एक सुन्दर सी बीबी.....

गूंगी बहरी भीड़ को चीर राज होता बलात्कार .
टेंसन नहीं लेने का, लीजिए न पान बहार......

मेरी बात न पचे तो लीजिए हाजमोला है.
बियर बार में टुल्ली होकर आज शिवाजी बोला है......

ए मेरे वतन के लोगों जरा पेट में भर लो पानी
लाल कार्ड के आस में न देखो राजनीती खानदानी......

इन्साफ की डगर पे बेटा तू चलना डर के.
कुत्ते भी न पूछे जो गए वतन पे मर के .....

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी है.
अपने प्यारे इंडिया की बस यही कहानी है..

Wednesday, April 3, 2013

रग रग में बसी मेरी रांची- An anthem for ranchi

(रांची मेरे सपनो का शहर है, मेरा अपना शहर है। ये गीत मैंने अपने शहर के हर एक जुडाव के  लिए लिखा है।एक गीत जो इस शहर के हरेक पहलु को समाहित करता है। अपने  भावनात्मक जुडाव को अतिशयोक्ति से बचाते हुए मगर मेरे दिल के करीब रखते हुए काफी मेहनत  से ये गीत बन पड़ा। मैं चाहता हूँ की हर एक रांची वासी तक ये गीत पहुंचे। अगर कोई इसे धुन पे पिरोना चाहे, आवाज़ के साथ साज-ले-ताल देना चाहे तो हमेशा खुला आमंत्रण है। कुछ शब्द जो परिभाषा की अपेक्षा रखते है अंत में लिख दिए गए हैं। एक कवी की दृष्टि से मेरी अपेक्षा आप सब से क्या होगी ये आप गीत पढ़ कर और गुनगुनाकर मुझे सूचित करें।----डॉ गोविन्द माधव )



फिरता हूँ सपने तलाशते 
घाघ-बाग़ महुआ पलाश के। 
हर मोड़ मुझे बाँहों में भर ले 
कैद करे यादों के पाश से।।

मैं अपने शहर से कह दूँ 

कह दूँ मैं अपने शहर से .....
रग रग में बसी मेरी रांची।
सांसो से सगी मेरी रांची।। 

खुले आसमान में सबसे कहूँ

ये मुझ में बहे, मैं इसमें रहूँ 
रग रग में बसी मेरी रांची। 
सांसो से सगी मेरी रांची।। ......

इन गलियों में गुजरा बचपन 

गूंजी किलकारी मांदर संग 
कोहबर में लिपटी दीवारें 
डोमकच , छऊ  करता हर आँगन।

सरहुल,करमा या बजरंगी 

कांके-हटिया सब एकरंगी 
बिरसा-टाना के प्राण यहाँ 
जिसे देख कम्पते थे फिरंगी।

कुडुख, सादरी, हो, कुरमाली 

खड़िया, मुंडा या संथाली 
धोनी और जयपाल के किस्से 
सुगना गाती है हर डाली।

लोहा-चांदी -सोना- हीरा

माटी से दिन-रात पनपता 
प्यार-मोहब्बत चैन-अमन 
आसमान से रोज़ बरसता।

झरनों के इस शहर को देखा 

सिंग-बोंगा के असर को देखा 
माथे पर शिव मंदिर ऊँचा 
है हाथों में सोने की रेखा

माँ  की गोद यहाँ की मिटटी 

और आसमान   है माँ  का आँचल
बूंद-धुल में लहू मिलाकर 
बरसा दूँ खुशियों के बादल। 


मैं अपने शहर से कह दूँ 
कह दूँ मैं अपने शहर से .....
रग रग में बसी मेरी रांची।


शब्द परिभाषा
घाघ= झरने
मांदर = झारखण्ड का प्रसिद्ध वाद्य यंत्र 
कोहबर = लोक चित्रकारी की एक शैली 
डोम कच / छऊ = लोक नृत्य की शैली 
सरहुल / करमा  = आदिवासी पर्व 
बजरंगी = रामनवमी का प्रतिक शब्द 
कांके/हटिया = स्थान 
बिरसा/टाना = स्वतंत्रता सेनानी 
कुडुख/ सादरी .......= आदिवासी जनजातीय भाषा 
धोनी/जयपाल = रांची के खेल हस्ती 
झरनों का शहर = city of waterfall, Wikipedia
सिंग-बोंगा = आदिवासी देवता 
शिव मंदिर= पहाड़ी मंदिर 
सोने की रेखा = स्वर्णरेखा नदी  
  



एक सुबह


सूरज भी जग सा रहा है 
रौशनी बिखरी जा रही है 
धुंधला धुंधला सा नशा जाने को है 
खामोशी सिमटी जा रही है 
अंगड़ाईयां सांसो में है 
एक उमंग सी उठती है पर 
फिर ख़याल एक आता है 
फिर से चादर आँखों पे रख 
झूठा ही सही, अन्धेरा कर लेता हूँ 
आँखे बंद करता हूँ 
एक तसल्ली  खुद को देता हूँ 
कि अभी भी रात है बाकी 
ख़्वाबों की सौगात है बाकी 
ख़्वाबों में उसको देखूंगा 
नींद ना आये तो भी क्या 
अँधेरे में उसको सोचूंगा 
वो कौन है 
वो कोई और नहीं तुम ही तो हो 
जिसके लिए कितने ही बहाने रोज़ कर जाता हूँ 
सब से 
रब से 
खुद से भी 
शायद तुम से भी।