Saturday, April 3, 2010

तेरे इंतज़ार में

तेरे इंतज़ार में
तेरी नज़र मुझ से मिली नहीं  शर्म से झुक गयी
ये नज़र का झुकना कोई इशारा ही तो है
और चेहरे पे वो छुपती हुई सी मुस्कराहट
वो जो जता जाती है दिल की हालत को
कितना छुपाओगे तुम अपने अरमानों को
कब तक जबरदस्ती जुल्म करोगे खुद पे और मुझ पे
कह क्यों नहीं देते अपने जालिम मन कोो कि तोड़ दे सारे विरोधी ख्यालों को
और उड़ आयो मेरे मन की बगियाँ में
हर कली हर पत्ता है तेरे इंतज़ार में
आ जाओ बस एक बार मेरे बाँहों में
ज़िन्दगी भर रखूंगा तुम्हे निगाहों में
कह भी दो वरना पथरा सी जाएँगी
तेरे इंतज़ार में
नज़र है तकती तेरी राहों में
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