Saturday, May 1, 2010

यादें



तुझको दिल में मैं बसाना चाहता हूँ
तेरी यादें गुनगुनाना चाहता हूँ
हर घरी के दर्द से एक मौत बेहतर
उस मौत से तुझमे समाना चाहता हूँ
फासले बनते बिगड़ते रहते हैं
तुम रूह मेरी हम यही बस कहते हैं
इस बात में भी दर्द कोई ढूंढ लेना
उस रूह को अपना बनाना चाहता हूँ
संग तेरा और बस तन्हाई हो
तू ना तो तेरे यादों की परछाई हो
उस छांव में कुछ मुझे आराम मिलता
इसी छाँव में एक आशियाना चाहता हूँ



No comments: