बंजारा मुसाफिर हो जाऊं
फिर राहों में ही खो जाऊँ।
मंज़िल की कोई फिक्र ना हो
खुद से खुद का जिक्र न हो।
रिश्तों का मायाजाल हटा दूँ
मुझे बांधे वो जंजाल हटा दूँ ।
आवारापन रूह पे छाये
वक्त मुझे घसीट ना पाये।
काश यही अंजाम हो मेरा
हाँ ऐसा 'निर्वाण' हो मेरा!
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